Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग -२४


साधना सिद्धार्थ की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी।
"आप बहुत परेशान लग रहें हैं।आज छुट्टी कर लीजिए।रात भर जगे हुए हैं।"

"नहीं शादी के कारण पहले ही एक हफ्ते की छुट्टी हो गई है ।आज जाना जरूरी है। मैं इस घर में सिर्फ अपने बाबूजी की इस नौकरी के कारण ही रहता हूंँ। अब कोई छुट्टी नहीं कर पाऊंँगा और मुझसे यह उम्मीद मत रखना कि तुम्हारी हर बात मानूंँगा।"
इतना कहकर वो बिस्तर से उठ गया और एक पुरानी बेंत वाली कुर्सी पर रखा तोलिया और खिड़की पर रखा ब्रश पेस्ट और सोप केस उठा कर नहाने चला गया।

साधना ने खुद के शरीर और कपड़ों में बदलाव न देखकर एक ठंडी सांँस ली। बहुत सुना था उसने सुहागरात के बारे में और सावन के साथ अपनी सुहागरात मनाने के कितने सपने देखे थे।पर सारे सपने टूट कर बिखर गए।वो किसी और की बांँहों में रात भर सोती रही।यह सोच कर उसे खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। इतनी जल्दी खुद को कैसे सौंपा उसने किसी और को।

उसे सिद्धार्थ की बातों में बहुत दर्द महसूस हुआ।क्या उसी की तरह वो भी दर्द में जी रहा है। परिवार से दुखी नजर आ रहा है।

मुझे सिद्धार्थ के बारे में जानना होगा।क्या इन्होंने भी मुझसे शादी सिर्फ अपने परिवार की खुशी के लिए की है।इनकी जिंदगी में भी कोई थी क्या?..या अभी भी यह किसी और से प्यार करते हैं।ऐसा कुछ होगा तो मैं खुद इनकी जिंदगी से हमेशा के लिए निकल जाऊंँगी। 
दुनिया बहुत बड़ी है।जब आत्महत्या का यही रास्ता ढूंढा था तो अपने कारण मैं किसी और का जीवन तो बर्बाद नहीं कर सकती। 

साधना विचारों के उधेड़ बुन में बिस्तर पर कंबल लपेटे बैठी हुई थी और तब तक सिद्धार्थ तोलिया लपेटे उस कमरे में नहाकर आ ही रहा था कि दरवाजे से साधना को वहीं बिस्तर पर बैठा देखकर वहीं रूक गया 
और बोला," आप अभी तक यहीं बैठी हैं जाईए मुझे स्कूल के लिए तैयार होना है।"

"ओह सॉरी.. ठीक है मैं जा रही हूँ। अच्छा बता दीजिए आप अभी नाश्ता क्या करेंगे मैं बना दूंँगी।"

"नहीं रहने दो मैं सुबह सिर्फ अंकुरित चना और किसमिस खाता हूंँ, जिसे मैंने रात को ही पानी में डाल दिया था।"

"अच्छा चाय..."

 हाँ वो मांँ बनाकर रखी होंगी । मैं जाते वक्त पी लूंँगा।"

साधना जैसे ही बिस्तर से उठी उसने बिस्तर के नीचे  छत में लगे खपड़े के टुकड़े देखे। उसे साफ करने के लिए जैसे ही झुकी सिद्धार्थ ने कहा,"आप छोड़ दीजिए, मैं स्कूल से आकर साफ कर दूंँगा। यह रोज का हाल है। मैंने अपने कमरे के लिए अलग झाड़ू रखा हुआ है।साफ सफाई का काम मैं स्कूल से आकर ही करता हूं।आप अभी जल्दी से जाईए वरना मैं तो देर हो ही जाऊंगा।आपको मांँ की डांट अलग सुनने को मिलेगी।"

"अच्छा आप चाभी ले दीजिएगा मैं दिन में यहांँ आकर साफ कर दूंँगी।"

"ठीक है मैं चाबी रही बरांँडे में बिजली के बोर्ड पर रख दूंगा।बस बंद ध्यान से कीजिएगा। कहीं दरवाजा खुला मत छोड़ दीजियेगा नहीं तो जंगली जानवर डेरा बसा लेंगे.."

"जी मैं ध्यान रखूंगी।"

क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

कविता झा'काव्या कवि'

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